NIH Funding Cuts in the US: How It Could Impact Medical Research and Global Health

अमेरिका में NIH फंडिंग में कटौती: मेडिकल रिसर्च और ग्लोबल हेल्थ पर प्रभाव


नमस्ते दोस्तों! आज हम एक बहुत ही महत्वपूर्ण और तात्कालिक खबर पर चर्चा करेंगे जो चिकित्सा जगत और वैश्विक स्वास्थ्य से जुड़ी है। Nature.com के अनुसार, अमेरिका में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के फंडिंग में हाल ही में कटौती हुई है। यह कटौती मेडिकल रिसर्च को प्रभावित कर सकती है और कई चल रहे अध्ययनों को रोक सकती है। खास तौर पर वैक्सीन हिचकिचाहट (vaccine hesitancy) और mRNA तकनीक जैसे क्षेत्रों में काम करने वाली परियोजनाएँ इस कटौती से प्रभावित हो सकती हैं। यह खबर इसलिए बड़ी है क्योंकि इसका असर न केवल अमेरिका बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य शोध पर भी पड़ सकता है। आइए इस विषय को विस्तार से समझते हैं।


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NIH क्या है और इसकी भूमिका

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) अमेरिका की सबसे बड़ी सरकारी संस्था है जो बायोमेडिकल और स्वास्थ्य संबंधी शोध को फंडिंग प्रदान करती है। यह संस्था हर साल अरबों डॉलर का बजट मेडिकल रिसर्च के लिए आवंटित करती है, जिससे नई दवाएँ, टीके, और उपचार विकसित होते हैं। NIH के शोध ने कैंसर, HIV, और हाल ही में कोविड-19 जैसी बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन अब इसकी फंडिंग में कमी ने वैज्ञानिक समुदाय में चिंता पैदा कर दी है।


फंडिंग में कटौती का कारण

Nature.com की रिपोर्ट के अनुसार, यह कटौती ट्रम्प प्रशासन के तहत जनवरी 2025 से शुरू हुई नीतिगत बदलावों का हिस्सा है। NIH का बजट पहले लगभग 48 बिलियन डॉलर था, जो अब काफी हद तक कम हो गया है। इस कटौती के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे:

  • प्राथमिकताओं में बदलाव: नई सरकार ने कुछ क्षेत्रों जैसे वैक्सीन हिचकिचाहट और mRNA तकनीक को प्राथमिकता से हटा दिया है।
  • राजनीतिक प्रभाव: वैक्सीन विरोधी भावनाओं और mRNA तकनीक पर विवादों ने इन क्षेत्रों में शोध को निशाना बनाया है।
  • आर्थिक कटौती: सरकारी खर्चों को कम करने की नीति के तहत NIH जैसे बड़े संस्थानों पर असर पड़ा है।


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प्रभावित होने वाले प्रमुख शोध क्षेत्र

इस फंडिंग कटौती का सबसे बड़ा असर उन शोध परियोजनाओं पर पड़ रहा है जो पहले से चल रही थीं। कुछ मुख्य क्षेत्र इस प्रकार हैं:

  1. वैक्सीन हिचकिचाहट (Vaccine Hesitancy)
    यह शोध इस बात पर केंद्रित था कि लोग टीकों से क्यों हिचकिचाते हैं और इसे कैसे दूर किया जा सकता है। हाल के वर्षों में, खासकर कोविड-19 महामारी के बाद, टीकाकरण दरों में कमी और खसरे जैसे रोगों की वापसी ने इस शोध को महत्वपूर्ण बना दिया था। लेकिन अब 40 से अधिक वैक्सीन हिचकिचाहट से जुड़े प्रोजेक्ट्स को बंद कर दिया गया है। इससे भविष्य में संक्रामक रोगों से लड़ने की हमारी क्षमता कमजोर हो सकती है।
  2. mRNA तकनीक
    mRNA तकनीक ने कोविड-19 टीकों (जैसे फाइजर और मॉडर्ना) को संभव बनाया और इसे कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज में भी क्रांतिकारी माना जा रहा है। लेकिन अब NIH इस क्षेत्र में शोध के लिए फंडिंग की समीक्षा कर रहा है और कई प्रोजेक्ट्स को रोकने की तैयारी में है। यह एक बड़ा झटका है क्योंकि mRNA तकनीक भविष्य की चिकित्सा का आधार बन सकती थी।
  3. अन्य क्षेत्र
    इसके अलावा, HIV, टीबी, और कैंसर जैसे रोगों पर शोध भी प्रभावित हो सकता है। उदाहरण के लिए, जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने $800 मिलियन की कटौती और 2,000 से अधिक नौकरियों के नुकसान की बात कही है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने भी $400 मिलियन की फंडिंग खो दी है।


वैश्विक स्वास्थ्य पर असर

यह कटौती केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहेगी। NIH दुनिया भर के स्वास्थ्य शोध के लिए सबसे बड़ा फंडर है। इसके प्रभाव इस तरह हो सकते हैं:

  • महामारी से लड़ने की क्षमता में कमी: mRNA और वैक्सीन शोध के रुकने से भविष्य की महामारियों से निपटना मुश्किल हो सकता है।
  • दवाओं का विकास रुकेगा: NIH ने पिछले दशक में 354 में से 356 FDA-अनुमोदित दवाओं में योगदान दिया था। अब यह प्रगति धीमी पड़ सकती है।
  • वैज्ञानिकों का पलायन: फंडिंग की कमी से कई वैज्ञानिक अन्य देशों में शोध के लिए जा सकते हैं, जिससे अमेरिका में "ब्रेन ड्रेन" होगा।


क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस कटौती पर गहरी चिंता जताई है। Nature.com के अनुसार, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह कटौती "वैज्ञानिक प्रगति के लिए खतरा" है। एक शोधकर्ता ने कहा, "बिना NIH के, न कैंसर इम्यूनोथेरेपी होती, न ओवरडोज की दवाएँ, और न ही कोविड-19 टीके।" यहाँ तक कि कुछ लोग इसे राजनीति से प्रेरित कदम मानते हैं, खासकर रॉबर्ट एफ. कैनेडी जूनियर के स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग के सचिव बनने के बाद, जो वैक्सीन संशयवादी के रूप में जाने जाते हैं।


क्या करें आगे?

यह खबर निश्चित रूप से चिंताजनक है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सारी उम्मीद खत्म हो गई है। कुछ कदम जो उठाए जा सकते हैं:

  • निजी फंडिंग: दवा कंपनियाँ और निजी संस्थाएँ शोध को आगे बढ़ा सकती हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: अन्य देशों के साथ मिलकर शोध को जारी रखा जा सकता है।
  • जागरूकता: आम लोगों को इस कटौती के प्रभावों के बारे में बताना जरूरी है ताकि नीति पर दबाव बन सके।

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